दोस्तों अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद से वहां के हालात बेहद खराब हो चुके हैं। पूरे देश में तालिबानियों के डर के चलते अफरा-तफरी का माहौल बना हुआ है। दुनिया के अलग-अलग देश अपने हिसाब से तालिबान की इस हरकत पर अपनी अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। लेकिन अब तक दुनिया के किसी भी मुल्क ने अफगानिस्तान में शांति बहाली के कोई प्रयास नहीं किए हैं। अफगानिस्तान की आम जनता बेहाल है। महिलाओं और बच्चों का सबसे बुरा हाल है। दुनियाभर के एक्सपर्ट अफगानिस्तान के मसले पर अमेरिका की नाकामियों को गिनाने में जुटे हैं।
उनका कहना है कि 20 साल तक अफगानिस्तान में रहने के बाद भी अमेरिकी फौज अफगान सरकार और यहां की फौज को इतनी ताकत नहीं दे पाए कि वह तालिबानियों का तनिक भी सामना कर पाए। तालिबान के मसले को सुलझाने के लिए एक्सपर्ट अपने हिसाब से मशविरा भी दे रहे हैं। कबीला संस्कृति वाले अफगानिस्तान में अमेरिका और रूस दोनों की बारी-बारी से विफलता के बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्या इस जगह पर कभी कोई ताकत शांति बहाली नहीं कर सकती है। ऐसे में भारतीय इतिहास के पन्ने पलटने पर एक ऐसी घटना याद आती है जिसमें बिहार के एक शासक ने बिना युद्ध के कूटनीतिक का प्रयोग कर अफगानिस्तान को भारत की सीमा में मिला लिया था।
आइए इतिहास के जरिए उस महाप्रतापी सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य की कहानी को विस्तार से समझने की कोशिश करते हैं जिसने बिना युद्ध के अफगानिस्तान की सीमा को भारत का हिस्सा बनाया था। इतिहास में इस घटना को भारतीय शासक की पहली कूटनीतिक जीत के रूप में भी याद किया जाता है। दिल्ली यूनिवर्सिटी के इतिहास विभाग की प्रोफेसर विजया लक्ष्मी सिंह कहती हैं भारत और अफगानिस्तान के रिश्ते सदियों पुराने हैं। कुछ इतिहासकार भारत-अफगानिस्ता संबंध को सिंधु सभ्यता से भी जोड़ते हैं। प्राचीन काल में शोर्तुगई ट्रेड कॉलोनी में आमू दरिया (अफगानिस्तान में नदी) थी। उत्तरी अफगानिस्तान के इस इलाके में यहां पुरातात्विक सिंधु कॉलोनी थी, जो व्यापार के लिए प्रयोग किया जाता था।
जस्टिन और ग्रीक-रोमन इतिहासकार प्लूटार्क महान भारतीय शासक चंद्रगुप्त मौर्य और अलेक्जेंडर के बीच रिश्ते का जिक्र करते हैं। अलेक्जेंडर के सेनापति सेल्युकस ने एक बार मौजूदा अफगानिस्तान (तब कंधार हुआ करता था) को जीत लिया था और पश्चिमी भारत के सरहद तक धमक दिखा दी। ऐसे में चंद्रगुप्त मौर्य भी सरहद की सुरक्षा के लिए वहां जा पहुंचे और दोनों में जंग छिड़ गई। यह युद्ध एक संधि के साथ खत्म हुआ। इसके तहत 305 ईसा पूर्व में सेल्युकस ने चंद्रगुप्त मौर्य को अफगानिस्तान सौंप दिया था। सबसे दिलचस्प बात यह है कि इस जंग के बाद मौर्य साम्राज्य और प्राचीन ग्रीक साम्राज्य के बीच कूटनीतिक रिश्ते कायम हो गए।
प्रोफेसर विजया बताती हैं कि ग्रीक साम्राज्य ने कंधार के अलावा अफगानिस्ताने के दूसरे इलाके और भारत पर चंद्रगुप्त का आधिपत्य स्वीकार कर लिया था। इस दोस्ती के बदले चंद्रगुप्त ने महावतों के साथ 500 हाथी, मुलाजिम, सामग्री और अनाज यूनान को भेजे। उन्होंने बताया कि ग्रीक (यूनान) के राजदूत मेगास्थनीज मौर्य के दरबार में नियुक्त हुए। मेगास्थनीज ने चंद्रगुप्त के कार्यकाल पर बहुत ही नामचीन किताब इंडिका लिखी, जिसमें हमें उस वक्त की जानकारी मिलती है। कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि सेल्युकस ने अपनी बेटी हेलेन की शादी चंद्रगुप्त मौर्य से की। हालांकि इसकी आधिकारिक जानकारी कहीं नहीं मिलती है। चंद्रगुप्त वंशज के ही महान सम्राट अशोक ने भी अफगानिस्तान पर शासन किया और इस इलाके में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार किया। अशोक के शासनकाल में अरमिक और ग्रीक दोनों भाषा अफगानिस्तान के इन इलाकों में बोली जाती थी।