दोस्तों साउथ के पॉपुलर अभिनेता अल्लू अर्जुन को आज किसी पहचान की जरुरत नहीं हैं। एक बहुत कामयाब फिल्म निर्माता के बेटे अल्लू अर्जुन ने अभिनय तो बहुत छोटेपन से ही शुरू कर दिया था। यूट्यूब और सैटेलाइट चैनलों पर उनकी फिल्में दुनिया में सबसे ज्यादा देखी गई फिल्में बन चुकी हैं। ये भी रोचक है कि ओटीटी पर रिलीज होने के बाद भी दर्शक उनकी फिल्म ‘पुष्पा पार्ट 1’ देखने अब भी लगातार सिनेमाघरों तक आ रहे हैं। एक वेबसाइड से अल्लू अर्जुन ने हैदराबाद में ये खास मुलाकात की और उनसे भारतीय सिनेमा के बदलते परिदृश्य, हिंदी सिनेमा में उनकी पारी और उनकी आने वाली फिल्मों के बारे में विस्तार से बात की।
‘पुष्पा पार्ट 1’ हिंदी में आपकी थिएटर में रिलीज हुई पहली फिल्म है। दर्शक के तौर पर मेरा ध्यान आपकी फिल्मों की तरफ कोई छह सात साल पहले जाना शुरू हुआ। मैंने ‘सन ऑफ सत्यमूर्ति’ देखी, ‘सर्रयैनोडू’ और ‘डीजे’ जैसी फिल्में देखी हैं। ये वही समय है जब आपकी फिल्मों ने यूट्यूब और टीवी चैनलों हंगामा करना शुरू किया? शायद ‘पुष्पा पार्ट वन’ की कहानी इसी में छुपी है।
हां, जरूर, जरूर, जरूर। मुझे भी क्या लगा कि इतने सारे लोग हैं जो मुझे यूट्यूब और सैटेलाइन चैनलों पर देख रहे हैं। मैं इन सबके बारे में सोचता रहता था। फिर अगर सोशल मीडिया पर इनकी प्रतिक्रियाओं देखों तो वे भी निराली हैं। मैं उत्तर भारत के भ्रमण पर जाता तो वहां भी देखता कि एक धड़कन तो है। वे लोग भी पूछते रहते थे कि आप अपनी फिल्में हिंदी में सिनेमाघरों में रिलीज क्यों नहीं करते। और, हां, यही वजह है कि हमने ‘पुष्पा पार्ट 1’ को हिंदी में सिनेमाघरों में रिलीज किया। हम ये प्रयोग पहले ‘अला वैकुंठपुरमुलू’ के साथ करना चाहते थे लेकिन मुझे इस फिल्म की श्रेणी को लेकर भरोसा नहीं था कि ये हिंदी में काम करेगी या नहीं, फिर मुझे लगा कि हिंदी मार्केट में लॉन्च होने के लिए ‘पुष्पा’ एक बेहतर श्रेणी की फिल्म रहेगी।
ऐसा इसलिए कि इस फिल्म में लोकरुचि के बेहतर अवयव हैं?
मेरे हिसाब से इसमें ज्यादा से ज्यादा लोगों को आकर्षित करने के लक्षण हैं। इसको बनाने का तरीका बेहतर और अधिक वैश्विक है। ‘अला वैकुंठपुरमुलू’ बहुत तेलुगु केंद्रित फिल्म है। और, इसे बनाया ही बहुत तेलुगु केंद्रित तरीके से गया था। ‘पुष्पा पार्ट 1’ को भी तेलुगु केंद्रित फिल्म के तौर पर ही बनाया गया है लेकिन इसका आकर्षण ऐसा रखा गया कि ये हर क्षेत्र के लोगों को पसंद आ सके।
‘पुष्पा’ अब आपका ‘अला वैकुंठपुरमुलू’ की कमाई का रिकॉर्ड तोड़ चुकी है? इसकी रीमेक भी बन रहा है हिंदी में।
ये अच्छा ही है। मेरा ये मानना है कि हमें हमेशा अपना काम पिछले काम से बेहतर ही अगली बार करना चाहिए। और, रही बात ‘अला वैकुंठपुरमुलू’ की रीमेक की तो किसी भी कलाकार के लिए ये हमेशा अच्छा होता है कि कोई दूसरा कलाकार आपके काम की प्रशंसा कर रहा है। किसी फिल्म की रीमेक बनाना फिल्म के कलाकार को मिली सच्ची प्रशंसा है।
यश, प्रभास और अब अल्लू अर्जुन। आप लोग अपनी फिल्में मूल भाषा के साथ ही हिंदी में डब करके रिलीज कर रहे हैं। क्या दक्षिण भारतीय कलाकारों के लिए पूरे देश के दर्शकों को खुश रखने की ये नई चुनौती है?
मैं इसे एक बड़े मौके की तरह देखता हूं। हमारे देश के लोग हमारी ही फिल्में देखने के लिए हमारा स्वागत बाहें फैलाकर कर रहे हैं। हम किसी दूसरे देश के लोगों को खुश करने की कोशिश नहीं कर रहे। देश के लोग भाषा व क्षेत्रभेद भुलाकर हर भाषा की फिल्में देख रहे हैं तो ये एक स्वर्णिम काल है सिनेमा का। ओटीटी एक नया सबूत है कि अच्छी कहानियां किसी भी भाषा की हों, लोग उन्हें देखते हैं। समझते हैं। कहानियां अच्छी हों तो हर भाषा में पसंद की जाती हैं
बतौर हीरो परदे पर आए आपको 20 साल हो रहे हैं और अब जाकर आप हिंदी भाषी दर्शकों के लिए बड़े परदे पर उतरे। ऐसा क्यों?
‘पुष्पा’ को तमाम दूसरी भाषाओं में रिलीज करने की प्रेरणा हमें टीवी के टीआरपी आंकड़ों से ही मिली। यूट्यूब पर रिकॉर्ड बनते देख कर मिली। ‘अला वैकुंठपुरमुलू’ देश में सबसे ज्यादा देखी गई फिल्म का रिकॉर्ड बना चुकी है और वह भी दो बार। मुझे लगा कि लोग मुझे देखना तो चाहते हैं लेकिन फिल्म को अच्छे से रिलीज करना है। मुझे भरोसा था कि दर्शक मुझे देखने सिनेमाघरों तक जरूर आएंगे और ये भरोसा सच साबित हुआ। इसे मैं सोशल मीडिया के जरिये समझ सकता था। लोगों में खिंचाव मौजूद था और इसकी धड़कन समझ आ रही थी।
आप तो खुद ही निर्माता हैं, हिंदी में फिल्म तो आप खुद ही बना सकते हैं। क्या आपकी योजना कोई ऐसी भारतीय फिल्म बनाने की है जैसी नाग अश्विन बना रहे हैं, प्रभास, दीपिका और अमिताभ बच्चन को लेकर?
बिल्कुल है। मैं एक कारोबारी कलाकार हूं। और एक कारोबारी कलाकार के तौर पर मैं व्यावसायिक फिल्में बनाउंगा ही और बनाता भी रहूंगा। फिल्म दर फिल्म दूसरी भाषाओं के कलाकार इस यात्रा में बिल्कुल शामिल हो सकते हैं। ये एक जरूरत भी है। फिलहाल मैं फिल्म ‘पुष्पा पार्ट 2’ के बारे में ये कह सकता हूं (मलयालम सिनेमा के दिग्गज कलाकार फहाद फासिल इस फिल्म में भी एसपी भंवर सिंह शेखावत के किरदार में हैं)। लेकिन, ये बहुत अच्छा होगा अगर दूसरी भाषाओं के कलाकार भी हमारे साथ आएं और हम सब मिलकर फिल्म बनाएं तो सिनेमा और बड़ा होगा। और, मुझे लगता है कि ये होना ही है।
हिंदी सिनेमा में सितारों के निर्देशन में दखल की शिकायतें आम हैं। एक अभिनेता के तौर पर आप खुद को अपने निर्देशक के प्रति कितना समर्पित करते हैं?
ये निर्देशक, निर्देशक पर निर्भर करता है। मेरा नजरिया ये होता है कि एक बार मैं पटकथा से संतुष्ट हो जाता हूं, इस पर पूरी चर्चा हो जाती है तो उसके बाद मुझे नहीं लगता कि फिल्ममेकिंग में हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश रह जाती है। हिंदी सिनेमा के बारे में मैं कोई टिप्पणी नहीं कर सकता क्योंकि मुझे वहां के बारे में पता नहीं है। लेकिन, मुझे यही लगता है कि निर्देशकों का सम्मान हर जगह होता है।
तेलुगु सिनेमा के दर्शक आपको आइकन स्टार कहकर बुलाते हैं, तमिल प्रशंसकों ने आपको बनी और मलयालम प्रशंसकों ने मल्लू अर्जुन नाम भी दिए हैं। प्रशंसकों और सितारों के रिश्तों के इस रिश्ते को आप कैसे परिभाषित करते हैं?
ये एक बहुत ही खूबसूरत रिश्ता होता है और ये एक तरह से हमारा विस्तृत परिवार हो जाता है। मैं इसे एक जिम्मेदारी की तरह देखता हूं क्योंकि मैं उनके प्रति उत्तरदायी हूं। अगर उनके साथ कुछ होता है तो मुझे उनकी देखरेख भी करनी होती है। कई बार पैसे से मदद करनी होती है कई बार और तरीकों से भी। ये एक तरह लेन-देन है। उन्होंने हमें इतना कुछ दिया है, बदले में हम अगर उन्हें थोड़ा कुछ भी दे पाते हैं तो ये हमारा सौभाग्य है। यहां तक कि जब भी हम कमर्शियल फिल्में बनाते हैं तो ध्यान रखते हैं कि इन्हें देखते समय बच्चे असहज न महसूस करें। सिनेमाहॉल में बैठी महिलाओं को संकोच न हो। मैं कभी ऐसी फिल्म नहीं करूंगा जिसे मैं अपनी पत्नी और अपनी बेटी के साथ न देख पाऊं। मैं अपनी फिल्म अपने परिवार के साथ देखते हुए अगर सहज नहीं हो सकता तो मैं ऐसी फिल्म करूंगा ही नहीं।
‘पुष्पा पार्ट 2’ इस साल रिलीज होगी और इसके बाद ‘एए21’ आएगी?
नहीं, अभी तो मैं सिर्फ ‘पुष्पा पार्ट 2’ पर ही अपना पूरा ध्यान केंद्रित कर रहा हूं और किसी के बारे में मै कुछ कह नहीं सकता। ‘पुष्पा पार्ट 2’ पूरी करने के बाद मैं कुछ और विकल्पों के बारे में सोचना शुरू करूंगा।
आपके दरवाजे हिंदी सिनेमा के लिए भी खुल चुके हैं?
हां, वाकई मैंने हिंदी सिनेमा के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं। अगर कोई वाकई में कोई शानदार प्रस्ताव हिंदी फिल्म का मेरा पास आता है तो मैं इसे करने के लिए तैयार हूं। अगर हिंदी सिनेमा से कुछ अच्छा मेरे पास आता है तो मैं हमेशा इसके लिए तैयार हूं।