भारत में कोरोना वायरस के मामले हर दिन नए रिकॉर्ड बना रहे हैं. देश में अब तक कोरोना के 2.46 लाख मामले सामने आ चुके हैं. देश में कोरोना से सबसे ज्यादा कोई राज्य प्रभावित हुआ है तो वो महाराष्ट्र है. महाराष्ट्र में तेजी से बढ़ती कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या के बीच कई बार ऐसी लापरवाही सामने आ रही है जो लोगों की जान पर आफत बन रही है. ऐसी ही एक लापरवाही मुंबई के वसई इलाके में स्थित एक प्राइवेट अस्पताल में सामने आई है, जिसने बिना कोरोना जांच की रिपोर्ट का इंतजार किए मरीज का शव उसके परिवार को सौंप दिया. इसके बाद परिजनों ने सैकड़ों लोगों की मौजूदगी में शव का अंतिम संस्कार कर दिया. बाद में अस्पताल में जो रिपोर्ट आई उसमें मृतक कोरोना वायरस से संक्रमित निकला.
कोरोना रिपोर्ट की खबर मिलते ही मृतक के परिवार और रिश्तेदारों में खलबली मच गई. इस बात की खबर जैसे ही प्रशासन को लगी वैसे ही मृतक के 40 परिवार के सदस्यों को क्वारंटाइन में भेज दिया गया. मृतक के अंतिम संस्कार में 500 से अधिक लोग आए थे. अब इन सभी लोगों में कोरोना संक्रमण का खतरा बढ़ गया है. परिजन ने अस्पताल पर लापरवाही का आरोप लगाया है कि उसने बिना कोरोना रिपोर्ट का इंतजार किए उन्हें शव क्यों सौंप दिया. बता दें कि मरीज की मौत लीवर फेल होने की वजह से हुई थी.
जानकारी के मुताबिक वसई के कार्डिनल ग्रेशियस अस्पताल में अरनाला के 55 साल के मरीज को लीवर की समस्या सामने आने के बाद एडमिट किया गया था. इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई. अस्पताल में मौत के बाद शव का कोरोना टेस्ट कराया गया, लेकिन रिपोर्ट आने से पहले ही शव परिजनों को सौंप दिया गया. परिजन मरीज का शव लेकर अरनाला गांव पहुंचे जहां उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया. वसई तालुका के स्वास्थ्य अधिकारी बालासाहेब जाधव ने बताया कि जैसे ही मामले की जानकारी मिली, प्रशासन ने सबसे पहले मरीज के संपर्क में सबसे ज्यादा आने वाले 40 लोगों का पता लगाया और उन्हें क्वारंटाइन किया गया. अंतिम संस्कार में शामिल 500 लोगों की स्क्रीनिंग की जा रही है.
उन्होंने माना कि यह पूरी तरह से कार्डिनल ग्रेशियस अस्पताल की लापरवाही का नतीजा है. अस्पताल को नोटिस भेजा गया है. मामले की जांच के बाद उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. वहीं दूसरी तरफ अस्पताल के जनरल मैनेजर ने कहा कि अस्पताल कोरोना मरीजों के शवों को हैंडओवर करने के दौरान सारी सावधानियां बरत रहा है. अस्पताल का कहना है कि मरीज जब अस्पताल में आया था तब उसे कोरोना बताकर एडमिट नहीं किया गया था. यह परिवार की जिम्मेदारी थी कि वह अंतिम संस्कार के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते.