चंद्रमौली से रामानंद सागर बनने तक किया इतना संघर्ष, चपरासी-ट्रक क्लीनर बनकर भी चमकाई अपनी किस्मत!

दोस्तों टीवी जगत में धार्मिक शो से अपनी खास पहचान बनाने वाले जाने-माने निर्माता रामानंद सागर की 29 दिसंबर को रामानंद सागर की बर्थ एनीवर्सरी है। रामानंद सागर 29 दिसंबर 1927 को लाहौर के पास असाल गुरु के एक धनी परिवार में हुआ था। वह बचपन से ही अपने माता-पिता का प्यार नहीं पा सके, दरअसल उनकी दादी ने उन्हें गोद ले लिया था। पहले उनका नाम चंद्रमौली था, लेकिन उनकी दादी ने उनका नाम बदलकर रामानंद कर दिया।

बता दे की 1932 में अपने करियर के शुरुआती दौरा में उन्‍होंने क्‍लैपर ब्‍वॉय के तौर पर साइलेंट फिल्‍म रेडर्स ऑफ द रेल रोड में काम किया। 16 साल में ही उनकी गद्य कविता को श्रीनगर के प्रताप कॉलेज में पब्लिश किया गया था। रामानंद ने शादी में दहेज लेने से इंकार कर दिया, जिसके लिए उन्हें घर से बाहर निकाल दिया गया।इसी के साथ उनके जीवन में संघर्ष की शुरुआत हुई। पढ़ाई जारी रखने के लिए उन्हें एक ट्रक क्लीनर और चपरासी के रूप में काम करना पड़ा। वह दिन में काम करते और रात में पढ़ाई करते थे।

बता दे की पढाई में होशियार होने की वजह से उन्हें पंजाब विश्वविद्यालय (पाकिस्तान) से स्वर्ण पदक मिला और उन्हें फ़ारसी भाषा में दक्षता के लिए मुंशी फ़ज़ल की उपाधि से सम्मानित किया गया। इसके बाद उन्होंने पत्रकारिता करना शुरू किया और जल्द ही वह एक समाचार पत्र में समाचार संपादक के पद पर पहुंच गए। इसके साथ ही वह लिखते भी रहे।

लाहौर के धनी परिवारों में शुमार रामानंद के फादर को अपना जमा जमाया व्‍यापार और तमाम जमीन जायदाद छोड़नी पड़ी। वह बंटवारे के समय 1947 में भारत आए थे। उस समय उनके पास संपत्ति के रूप में केवल पांच आने थे।इनकी बदौलत रामानंद ने फिर से अपने पैर खड़े किए और मुंबई फिल्‍म इंडस्‍ट्री में घुस गए। यहां उन्‍हें राजकपूर की फिल्‍म बरसात के डायलॉग और स्‍क्रीन प्‍ले लिखने का काम मिल गया। 1949 में रिलीज हुई फिल्‍म बरसात में राजकपूर और नरगिस के अभिनय और रामानंद के डायलॉग को खूब पसंद किया गया।

अपनी मेहनत के दम पर उन्होंने इंडिया के फिल्म क्षेत्र में नाम किया और 1950 में अपनी खुद की प्रोडक्शन कंपनी सागर आर्ट्स बनाई, जिसकी पहली फिल्म ‘आतिथि’ थी। इस कंपनी के नाम कई चर्चित फिल्में हैं जिनमें पैगाम, आंखे, ललकार, जिंदगी और आरजू जैसी फिल्में शामिल हैं। 1985 में उन्होंने छोटे पर्दे की दुनिया में प्रवेश किया। उनका सबसे पोपुलर सीरियल ‘रामायण’ रहा। जिसने लोगों के दिलों में एक आदर्श इंसान के रूप में अपनी छवि बनाई, यह सीरियल उन्हें पॉपुलैरिटी के चरम पर ले गया।

80 के दशक में एक दौर ऐसा भी आया जब देश में दूरदर्शन एंटरटेनमेंट का साधन बनने लगा। रामानंद को एहसास हो चला था कि इस दौर में टीवी का जबरदस्त दबदबा होगा। यही कारण है कि उन्होंने रामायण और महाभारत जैसे शोज का निर्माण किया। ये वो दौर था जब रामायण या महाभारत के प्रसारण होने पर सड़कों पर सन्नाटा पसर जाता था। टीवी सीरीज में राम और सीता का किरदार अदा करने वाले अरुण गोविल और दीपिका चिखलिया को लोग सच में राम सीता मानने लगे थे। रामानंद ने इन सीरियल्स के सहारे काफी लोकप्रियता हासिल की। उन्होंने 12 दिसंबर 2005 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया था।

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