दोस्तों कोरोना महामारी के कारण अनेक लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा है। लेकिन इस महामारी में भी कई निडर लोगो ने आगे आ कर लोगो की बहुत मदद की है। आज आपको एक ऐसी है साहसी महिला के बारे में बता रहे है जिन्होंने कई लोगो की मदद की है, जिनकी आयु 45 साल हो चुकी है फिर भी वे लोगों का इलाज़ करने के लिए 10 घण्टे पैदल चलकर उनके पास जाया करती हैं। बता दे की इन स्वास्थ्य कार्यकर्ता का नाम सुमन ढेबे है। पिछले साल जब जुलाई महीने में उन्हें यह पता चला कि महाराष्ट्र के पुणे जिले में स्थित मानगांव में कुछ ग्रामीण कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं, तो वे उनकी खोज में लग गई ताकि वहां गांव का अन्य व्यक्ति संक्रमित ना हो जाए।
सुमन राज्य सरकार के माझे कुटुम्ब मांझी जावबदारी अभियान का हिस्सा रही हैं, जिसके द्वारा डोर-टू-डोर स्क्रीनिंग अभियान सुनिश्चित किया जाता है। इस परियोजना का उद्देश्य कोरोना संक्रमित का पता लगाना, उनकी पहचान करना और उसे फैलने से रोकना है। आशा सुमन ढेबे महाराष्ट्र के 70,000 स्वास्थ्य कर्मियों में से हैं, जिन्होंने अपने अत्यधिक जोश और समर्पण के साथ कई लोगों की जान बचाई। रिपोर्ट के अनुसार कोरोना के पहली लहर के दौरान शिरकोली गांव से यह सूचना मिली कि यहां कुछ व्यक्ति संक्रमित हैं। तब सुमन उनके पास जाने के लिए 10 घण्टे पैदल चला करती थीं। वे किसी मौसम की परवाह किये बैगर अपने मकसद को पूरा करने के लिए हाथ में एक छड़ी लिए निकल जाती थी।
सुमन के उत्साह और सत्यनिष्ठा पर जिला परिषद के अधिकारियों ने ध्यान दिया और उनके प्रयासों की सराहना की। उनकी कड़ी मेहनत ने सुनिश्चित किया कि आसपास के सभी पांच गांव दूसरी लहर के दौरान संक्रमण मुक्त रहे हैं।
अधिकारियों ने सुमन की कड़ी मेहनत को COVID मुक्त गांवों की सफलता का श्रेय दिया। पोल गांव में रहने वाली सुमन रोजाना सुबह 8 बजे घर के कामों के बाद वहां से निकल जाती है और 12-13 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर गांव में जाती। उन्हें चार गांवों में जाकर लोगों का परीक्षण करना था। जिसमें मनगांव, शिरकोली, थनगांव और घोड़शेत गांव आते हैं।
यह उनके मेहनत का ही फल है कि किसी भी गांव में नहीं कोई व्यक्ति संक्रमित नहीं हुआ। हर दिन जब वह घर लौटती तो उन्हें डर रहता था कि कहीं वे अपने परिवार को संक्रमित ना कर दें, लेकिन शुक्र है कि ऐसा नहीं हुआ। स्वास्थ्य कार्यकर्ता ने कहा कि उन्हें जो गांव सौंपे गए थे, उनमें से कोई भी गांव दूसरी लहर के दौरान संक्रमित नहीं हुआ जिससे मुझे बहुत खुशी हुई। सुमन को सभी ‘डॉक्टर बाई’ भी कहते हैं और वह 2012 से इस नौकरी से जुड़ी हैं। वे गर्भवती महिलाओं, नवजात शिशुओं और प्रसव का कार्य कराती हैं लेकिन महामारी के बाद उन्हें यह काम सौंपा गया था कि संक्रमण गांवों में न फैले।उन्होंने कहा, “मुझे प्रति माह 2,000 रुपये मिलते हैं लेकिन मैं ग्रामीणों की मदद करके बहुत खुश हूं। हालांकि मेरा बेटा चाहता है कि मैं उसके साथ पुणे रहूं, लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकती।”-