भाई को याद कर बहन सीमा बत्रा की आंखे हो जाती है नम ,आखिरी फोन पर कैप्टन विक्रम बत्रा ने बड़ी बहन को कहा था दीदी में ऊपर जा रहा हु!

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दोस्तों कारगिल युद्ध के रियल हीरो रहे कैप्टन विक्रम बत्रा के जीवन पर बनी इस फिल्म ने सिर्फ उनके परिवार ही नहीं बल्कि देखने वाले हर फैंस को भावुक कर दिया।  उनके दोस्त उन्हें शेर कहते थे और उन्हें कारगिल मिशन में कोड नेम ‘शेरशाह’ मिला थाऔर इसी के साथ उन्हें  ‘कारगिल का शेर’ की भी संज्ञा दी गई। परमवीर चक्र से सम्मानित कैप्टन विक्रम बत्रा कारगिल के वो हीरो थे जिन्होंने अपनी जान की परवाह न करते हुए 16 हजार फीट की ऊंचाई पर छुपे दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए। अपने साथियों की जान बचाते हुए 7 जुलाई 1999 को शहीद हो गए थे।

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कारगिल युद्ध के दौरान कैप्टन विक्रम बत्रा को 5140 प्वाइंट को दुश्मनों से आजाद करने की जिम्मेदारी मिली थी,  20 जून 1999 उन्होंने इस मुश्किल लड़ाई को जीतकर फतेह हासिल की। जीत के बाद उन्होंने इस चोटी से ‘यह दिल मांगे मोर’ का नारा दिया था जो पूरे देश का नारा बन गया था। उनकी वीरता और प्रेम की अनोखी मिसाल ही शेरशाह मूवी में दिखाई गई है। डिंपल चीमा जो आज 22 साल बाद भी उनकी विधवा बनकर जिंदगी जी रही है। वह विक्रम बत्रा की क्लासमेट थीं, पढ़ाई के दौरान ही दोनों में दोस्ती हो गई थी लेकिन प्रेम कहानी अधूरी रह गईं। दूसरी तरफ विक्रम का परिवार आज भी उन्हें हर पल याद करता है।उनके माता पिता, उनकी दोनों बड़ी बहनें सीमा और नूतन बत्रा, जुड़वां भाई विशाल बत्रा आज भी  भाई की यादों को संयोजे हैं।

 

सीमा बत्रा सेठी से छोटी नूतन बत्रा हैं और दोनों बहनों से छोटे थे ट्विन्स भाई। जिस समय विक्रम के शहादत की खबर आई तो बड़ी बहन ही ससुराल से माता-पिता के पास जाने के लिए मंडी से पालमपुर भागी।। उस समय नूतन और विशाल बत्रा दोनों दिल्ली में थे। 7 जुलाई 1999, विक्रम के शहादत की खबर आई तो विशाल बत्रा ने उस वाक्या के बारे में बताया कि ‘जब भाई के शहादत की खबर आई तो मेरी सबसे बड़ी बहन मंडी (हिमाचल प्रदेश) में अपने ससुराल में थी और पांच महीने की गर्भवती थी। भाई के जाने का उन्हें ऐसा सदमा लगा कि उसने बच्चे को खो दिया। वहीं, दूसरी बड़ी बहन उस समय दिल्ली में रहती थी। विक्रम बत्रा की उम्र उस समय सिर्फ 24 साल की थी।’सीमा बत्रा आज भी अपने भाई को याद कर आंखे भरती हैं, उन्हें याद करती हैं।  उन्होंने हाल ही में एक इंटरव्यू में बताया कि ‘ऐसा कोई पल, फेस्टिवल-फैमिली ओकेशन नहीं जब वह विक्रम को याद नहीं करतीं। घर में रोज विक्रम की बात होती है।’

भाई के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा , ‘भाई जब 8वीं-नौवीं में थे तभी उन्होंने आर्मी ज्वाइंन करने की इच्छा रखीं थी। डीएवी से वह सेंट्रल स्कूल गए थे। उनका फ्रैंड सर्कल भी आर्मी से जुड़ा था। पालमपुर में उनके फ्रैंड आर्मी ऑफिसर के बच्चे थे। आर्मी यूनिफार्म से वह काफी प्रभावित होते थे। बस यहीं से उन्होंने फैसला कर लिया था कि वह भी 12वीं के बाद आर्मी ही ज्वांइन करेंगे। जब 1999 में कारगिल युद्ध में पता चला कि भाई विक्रम युद्ध में शामिल होने जा रहे हैं तो उन्होंने बड़ी दीदी को फोन किया और कहा था- दीदी मैं ऊपर जा रहा हूं…इस जवाब से सीमा काफी असहज हुई और फिर दोबारा पूछने पर उन्होंने कहा कि वह कारगिल युद्ध के लिए जा रहे हैं तो इस पर बहन सीमा कहती हैं ऐसे बोलो ना लेकिन एक डर था जो मन में बना था।

जून में विक्रम युद्ध में शामिल हुए थे लेकिन हर समय परिवार उनकी बहनों के मन में एक डर लगा रहता था। सीमा कहती हैं, हम जिस बारे में सोचकर रोज डरते थे वो ही एक दिन हुआ। हम एक शादी समारोह में थे जब यह खबर आईं तब मैं फोरन मायके के लिए रवाना हुईं। भाई को हम हर पल याद करते हैं। उसे मिस करते हैं लेकिन जब-जब विक्रम की बात होती हैं तो हम बेहद गर्व महसूस करते हैं। फिल्म के बारे में बात करते हुए उन्होंने बताया कि फिल्म में आरीजन फैक्ट्स ही दिखाए गए है जो कि सच्चाई है। विक्रम के भाई भी उन्हें हर पल याद करते हैं। वह बताते हैं कि उन्हें यह सब ऐसा लगता है जैसे मानों कल की बात हो। ऐसा कोई दिन नहीं गया जब हमने उसके बारे में बात न की हो। विशाल कई बार बहुत दुखी भी हो जाते हैं क्योंकि वह भाई को बहुत मिस करते हैं लेकिन वहीं दूसरे तरफ बहादुर सैनिक के भाई होने का गर्व महसूस करते हैं।

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