पिता की मौत ने जोड़ दिया लता जी का संगीत जगत से 80 सालो का नाता, परिवार की जिम्मेदारी की वजह से नहीं की शादी!

दोस्तों भारत का रत्न और स्वर कोकिला कहलाने वाली प्रसिद्ध गायिका लता मंगेशकर का 92 साल की उम्र में निधन हो गया है। लेकिन उनके मधुर गीतों के रूप में वे हमेशा सभी के दिलो में हमेशा हमेशा ज़िंदा रहेगी। लता जी का जन्म 28 सितंबर, 1929 को मध्य प्रदेश के इंदौर में हुआ था। उनके पिता पंडित दीनानाथ मंगेशकर रंगमंच के कलाकार और गायक थे। लता जी को बचपन से ही गाने का शौक था और म्यूजिक में उनकी दिलचस्पी भी शुरू से ही थी।


लता ने 13 साल की उम्र में पहली बार साल 1942 में आई मराठी फिल्म ‘पहली मंगलागौर’ में गाना गाया। हिंदी फिल्मों में उनकी एंट्री साल 1947 में फिल्म ‘आपकी सेवा’ के जरिए हुई। उन्होंने 80 साल के सिंगिंग करियर में अब तक 36 भाषाओं में करीब 50 हजार से ज्यादा गाने गाए हैं। साल 2015 में लता जी ने आखिरी बार निखिल कामत की फिल्म ‘डुन्नो वाय 2’ में गाना गाया था, उसके बाद से वो अब तक सिंगिग से दूर हैं।

लता जी को पहली बार स्टेज पर गाने के लिए 25 रुपए मिले थे। इसे वह अपनी पहली कमाई मानती हैं। लता के भाई हृदयनाथ मंगेशकर और बहनें उषा मंगेशकर, मीना मंगेशकर और आशा भोंसले सभी ने संगीत को ही अपने करियर के रूप में चुना। हृदयनाथ मंगेशकर के साथ लता ने कुछ मराठी गाने भी गाए हैं, जिनमें से फिल्म कामापुर्तामामा में गाया हुआ गाना आशा निशा पुर्ता कढ़ी सबसे फेमस था।

संगीतकार गुलाम हैदर ने 18 साल की लता को सुना तो उस जमाने के सफल फिल्म निर्माता शशधर मुखर्जी से मिलवाया। शशधर ने साफ कह दिया ये आवाज बहुत पतली है, नहीं चलेगी’। फिर मास्टर गुलाम हैदर ने ही लता को फिल्म ‘मजबूर’ के गीत ‘अंग्रेजी छोरा चला गया’ में गायक मुकेश के साथ गाने का मौका दिया। यह लता का पहला बड़ा ब्रेक था, इसके बाद उन्हें काम की कभी कमी नहीं हुई। बाद में शशधर ने अपनी गलती मानी और ‘अनारकली’, ‘जिद्दी’ जैसी फिल्मों में लता से कई गाने गवाए।

लता मंगेशकर ने शादी नहीं की। इसका जवाब उन्होंने खुद एक इंटरव्यू में बताया था और कहा था, ‘घर के सभी मेंबर्स की ज़िम्मेदारी मुझ पर आ गई थी। इस वजह से कई बार शादी का ख़्याल आता भी तो उस पर अमल नहीं कर सकती थी। बेहद कम उम्र में ही मैं काम करने लगी थी। बहुत ज़्यादा काम मेरे पास रहता था। साल 1942 में तेरह साल की छोटी उम्र में ही सिर से पिता का साया उठ गया था इसलिए परिवार की सारी जिम्मेदारियां मुझ पर ऊपर आ गई थीं तो शादी का ख्याल मन से निकाल दिया।’

लता मंगेशकर के पिता शास्त्रीय संगीत के बहुत बड़े प्रशंसक थे, इसीलिए शायद वे लता जी के फिल्मों में गाने के खिलाफ थे। 1942 में उनके पिता का देहांत हो गया। इसके बाद उनके परिवार की आर्थिक स्थिति डांवाडोल हो गई और लता मंगेशकर ने मराठी और हिंदी फिल्मों में छोटे-छोटे रोल निभाने शुरू कर दिए। मास्टर विनायक ने उन्हें और आशा भोंसले को अपनी कुछ फिल्मों रोल भी दिए और गाने का मौका भी।

1962 में जब लता 32 साल की थी तब उन्हें स्लो प्वाइजन दिया गया था। लता की बेहद करीबी पद्मा सचदेव ने इसका जिक्र अपनी किताब ‘ऐसा कहां से लाऊं’ में किया है। जिसके बाद राइटर मजरुह सुल्तानपुरी कई दिनों तक उनके घर आकर पहले खुद खाना चखते, फिर लता को खाने देते थे। हालांकि, उन्हें मारने की कोशिश किसने की, इसका खुलासा आज तक नहीं हो पाया। करियर के सुनहरे दिनों में वो गाना रिकॉर्ड करने से पहले आइसक्रीम खा लिया करती थीं और अचार, मिर्च जैसी चीजों से भी उन्होंने कभी परहेज नहीं किया। उनकी आवाज हमेशा अप्रभावित रही। 1974 में लंदन के रॉयल अल्बर्ट हॉल में परफॉर्म करने वाली वे पहली भारतीय हैं।

अपने सफर को जब लता याद करती हैं तो उन्हें अपने शुरुआती दिनों की रिकॉर्डिंग वाली रातें भुलाए नहीं भूलतीं। तब दिन में शूटिंग होती थी और रात की उमस में स्टूडियो फ्लोर पर ही गाने रिकॉर्ड होते थे। सुबह तक रिकॉर्डिंग जारी रहती थी और एसी की जगह आवाज करने वाले पंखे होते थे। ‘भारत रत्न’ लता मंगेशकर ने 36 भाषाओं में 50 हजार से ज्यादा गीत गाए हैं। बकौल लता जी, ‘पिताजी जिंदा होते तो मैं शायद सिंगर नहीं होती’… ये मानने वाली महान गायिका लता मंगेशकर लंबे समय तक पिता के सामने गाने की हिम्मत नहीं जुटा पाई थीं। फिर परिवार को संभालने के लिए उन्होंने इतना गाया कि सर्वाधिक गाने रिकॉर्ड करने का कीर्तिमान ‘गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में 1974 से 1991 तक हर साल अपने नाम दर्ज कराती रहीं।

बता दे की लता जी को का अवार्ड से सम्मानित किया गया है- फिल्मफेयर अवॉर्ड (1958, 1962, 1965, 1969, 1993 और 1994), नेशनल अवॉर्ड (1972, 1975 और 1990) ,महाराष्ट्र सरकार अवॉर्ड (1966 और 1967) , 1969- पद्म भूषण, 1989-दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड, 1993-फ़िल्मफेयर लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड, 1996-स्क्रीन ‘लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड,1997-राजीव गांधी अवॉर्ड, 1999-पद्मविभूषण, ज़ी सिने का लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड, 2000-आई.आई.ए.एफ(आइफ़ा) का ‘लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड, 2001-स्टारडस्ट का लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड, नूरजहां अवॉर्ड, महाराष्ट्र भूषण अवॉर्ड, 2001-भारत रत्न।

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